चंद पैसो के लिए टीवी पट ठुमके लगाने वालो को भारत के युवा अपना हीरो मानने लगे हैं लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं माँ भारती के एक ऐसे लाल के बारे में जो की सही मायनों के हीरो कहलाने लायक हैं..
ये हैं स्वर्गीय नरेन्द्र चौधरी,नरेन्द्र चौधरी छत्तीसगढ़ के कांकेर में जंगल वारफेयर काॅलेज में तैनात थे, मूलतः राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले नरेन्द्र चौधरी बम डीफ्यूज करने में माहिर थे,जाट रेजिमेंट के बाद 2005 में जंगलवार काॅलेज, कांकेर में तैनात किया गया था। यहां वे प्रमोट होकर नाॅन कमीशन आॅफिसर, प्लाटून कमांडर हो गए थे। उनके साथी उन्हें अपना गुरु मानते थे।
वे बताते हैं कि नरेंद्र सिंह इतने निडर थे कि पूरी टीम को बम से दूर रखते और खुद पास जाकर डिफ्यूज करते। रिस्क लेने में उनका कोई मुकाबला नहीं था। वे कहते हैं कि चौधरी को बम निकालने में एेसी महारत थी कि बम देखते ही वह बता देते कि बम जमीन से बाहर आएगा या फिर उसे वहीं डिफ्यूज करना है।
48 साल के नरेंद्र सिंह चौधरी इतने एक्टिव थे कि बगैर खाना या पानी लिए पूरी फुर्ती के साथ 50 किमी तक की दूरी आसानी से तय कर लेते थे। कैंप में किसी ने कभी उन्हें बीमार पड़ते भी नहीं देखा था। इन्हीं खूबियों के कारण उन्हें स्टील मैन बुलाया जाता था।
जंगलवार कालेज में तैनात होने के बाद उन्होंने अब तक 256 बमों को डिफ्यूज किया था।
नक्सल इलाके में अब तक 256 बम डिफ्यूज करने वाले चौधरी की 11 मई 2016 की चपेट में आने से मौत हो गई।
ग्रेनेड फटा तो एक टुकड़ा आंख के अंदर जा धंसा
- नरेंद्र कांकेर के जंगल वारफेयर काॅलेज में बम डिफ्यूज करने की ट्रेनिंग दे रहे थे। इस दौरान नरेंद्र ने एक ग्रेनेड फेंका। सात सेकेंड बाद भी जब वह नहीं फटा तो वे उसे देखने धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे।
- वे ग्रेनेड से करीब 30 मीटर दूरी पर ही थे, तभी अचानक धमाका हुआ और बम का एक टुकड़ा सीधे नरेंद्र की दाहिनी आंख से होते हुए अंदर जा धंसा। जिससे उनकी मौत हो गई।
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