
दरअसल ओलंपिक मैराथन में हिस्सा लेने वाले हर देश को हर 2.5 किलोमीटर पर एक डेस्क मिली होती है. यहां रनर को देने के लिए तरल पदार्थ रखे जाते हैं. भारतीय डेस्क पर कोई स्टाफ या सामान उपलब्ध ना होने के कारण जैशा को हर 8 किलोमीटर पर कॉमन ओलंपिक काउंटरों से ही काम चलाना पड़ा. कुल 157 एथलीट्स में जैशा को 89वां स्थान मिला.
रियो से वापस लौटी जैशा ने भारतीय टीवी न्यूज चैनल एनडीटीवी से बातचीत में कहा, "उस गर्मी में, वो दूरी तय करना, आपको इतना पानी चाहिए. हर 8 किलोमीटर पर पानी का एक कॉमन पॉइंट होता है, लेकिन आपको हर किलोमीटर पर पानी चाहिए होता है. बाकी एथलीट्स को रास्ते में कुछ खाने को भी मिल रहा था. मुझे कुछ नहीं मिला. देश का एक झंडा भी नहीं नजर आया. हम अपने झंडे से बेहद प्यार करते हैं. उसे देख कर ही हमें इतनी ऊर्जा मिल जाती है."
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