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रविवार, 19 जून 2016

एक भारतीय जासूस जो पाकिस्तानी सेना में मेजर रैंक तक पहुँच गये थे...




अपने देश के लिए दुशमन देश में जाकर जासूसी करना बड़ा ही मुश्किल भरा काम होता है। एक तरफ तो जहां हर वक़्त उनकी गर्दन पर मौत की तलवार लटकी रहती है वही दूसरी तरफ बदकिस्मती से यदि वो देश की सेवा करते हुए दुश्मन देश में पकड़ा जाए तो अपने देश की सरकार ही उनसे पल्ला झाड़ लेती है, उनकी किसी तरह की कोई सहायता नहीं करती है। और अंत में जब उनकी दुशमन देश में मौत हो जाती है तो उनको अपने वतन की मिट्टी तक नसीब नहीं होती है।


आज हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के सबसे चालाक जासूसों में से एक रविन्द्र कौशिक के बारे में..
राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले के रहने वाले कौशिक ने 23 वर्ष की आयु में स्तानक की पढ़ाई करने के बाद ही भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ में नौकरी शुरू की.साल 1975 में कौशिक को भारतीय जासूस के तौर पर पाकिस्तान भेजा गया था और उन्हें नबी अहमद शेख़ का नाम दिया गया. 


पाकिस्तान पहुंच कर कौशिक ने कराची के लॉ कॉलेज में दाखिल लिया और कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की.पाकिस्तान जाने के पहले उनका खतना भी कराया गया था.


इसके बाद वो पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गए और मेजर के रैंक तक पहुंच गए. लेकिन पाकिस्तान सेना को कभी ये अहसास ही नहीं हुआ कि उनके बीच एक भारतीय जासूस काम कर रहा है.कौशिक को वहां एक पाकिस्तानी लड़की अमानत से प्यार भी हो गया. दोनों ने शादी कर ली और उनकी एक बेटी भी हुई.कौशिक ने अपनी जिंदगी के 30 साल अपने घर और देश से बाहर गुजारे.
इस दौरान पाकिस्तान के हर कदम पर भारत भारी पड़ता था क्योंकि उसकी सभी योजनाओं की जानकारी कौशिक की ओर से भारतीय अधिकारियों को दे दी जाती थी.

 ऐसे खुला राज



1983 में कौशिक का राज खुल गया. दरअसल रॉ ने ही एक अन्य जासूस कौशिक से मिलने पाकिस्तान भेजा था जिसे पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ने पकड़ लिया.पूछताछ के दौरान इस जासूस ने अपने इरादों के बारे में साफ़ साफ़ बता दिया और साथ ही कौशिक की पहचान को भी उजागर कर दिया.


हालांकि कौशिक वहां से भाग निकले और उन्होंने भारत से मदद मांगी, लेकिन भारत सरकार पर आरोप लगते हैं कि उसने उन्हें भारत लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई.आखिरकार पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों ने कौशिक को पकड़ लिया और सियालकोट की जेल में डाल दिया. वहां न सिर्फ उनका शोषण किया गया बल्कि उन पर कई आरोपों में मुकदमा भी चला.


बताते हैं कि वहां रवींद्र कौशिक को लालच दिया गया कि अगर वो भारतीय सरकार से जुड़ी गोपनीय जानकारी दे दें तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा. लेकिन कौशिक ने अपना मुंह नहीं खोला, पाकिस्तान में कौशिक को 1985 में मौत की सजा सुनाई गई जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया.


वो मियांवाली की जेल में रखे गए और 2001 में टीबी और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई.

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