
कहां हैं ये मंदिर?
जीण माता मंदिर जयपुर से से लगभग 115 किलोमीटर दूर सीकर ज़िले में अरावली पहाड़ियों में हैं. सीकर से लगभग 15 किमी जयपुर बीकानेर राजमार्ग पर गोरियां रेलवे स्टेशन के पास काजल शिखर पहाड़ी है. जीण का मंदिर यही है.
ये लिखा हैं इतिहास में
"8 मार्च सन 1679 को बादशाह औरंगजेब की आज्ञा से एक विशाल मुग़लवाहिनी जिसमें तोपखाना तथा हस्ती सेना भी शामिल थी- सेनापति दराबखां के नेतृत्व में खंडेला के राजपूतों को सजा देने और उनके पूजा-स्थलों को तोड़-फोड़कर धराशाही कर देने हेतु भेजी गई| नबाब कारतलबखां मेवाती और सिद्दी बिरहामखां जैसे अनुभवी सेनानी, जो खंडेले के पहले युद्ध में पराजित होकर भाग गये थे- इस अभियान में शामिल थे|" (खंडेला का वृहद इतिहास; पृष्ठ- 98,99)
औरंगजेब ने टेके घुटने, हर महीने सवा मण तेल किया भेंट:
लोक मान्यता के अनुसार एक बार मुगलों के बादशाह औरंगजेब ने जीण माता और भैरो के मंदिर को तोडऩे के लिए अपने सैनिकों को भेजा था. शाही सेना मंदिर को तोड़ने के उद्देश्य से जीणमाता मंदिर की पहाड़ियों में जैसी ही पहुंची| पहाड़ियों में मौजूद बड़ी संख्या में "बड़ी मधुमक्खियाँ" जिन्हें स्थानीय लोग "भंवरा मोह" कहते है, छिड़ गई और औरंगजेब की सेना का काट-काट कर बुरा हाल कर दिया, तब उनसे बचने को औरंग के सेनापति मंदिर के पुजारियों की शरण में गये और बचाव का उपाय पूछा| पुजारियों द्वारा बताये जाने के बाद सेनापतियों ने देवी मंदिर में तेल चढ़ाया, तब जाकर मधुमक्खियों ने सेना का पीछा छोड़ा (आज भी किसी के घर में लगे पेड़ पर ये बड़ी मधुमक्खियाँ छाता बना लेती है तो उन्हें वहां से हटाने के लिए लोग जीणमाता के तेल की कड़ाही का भोग लगाने को बोलते है, ऐसा करते ही कुछ घंटों में ही मधुमक्खियाँ वहां से उड़ जाती है, यह प्रयोग स्थानीय लोगो के लिए बहुत कारगर हैं )| और तब से देवी माँ के मंदिर में दिया जलाने हेतु तेल का खर्च औरंगजेब के खजाने से आने लगा, जिसे बाद में दिल्ली द्वारा जयपुर रियासत के जिम्मे लगाया गया, जो आजादी से पूर्व तक मंदिर में आता था|
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