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शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

आम आदमी पार्टी के 21 विधायको को ले 'डूबा` ये युवा अधिवक्ता....



नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट के इस युवा वकील की राष्ट्रपति के सामने दाखिल रिट ने दिल्ली सरकार की मानो खाट खड़ी कर दी हो। उधर राष्ट्रपति की ओर से दिल्ली सरकार के संसदीय सचिव विधेयक को असंवैधानिक बताकर वापस कर देने से  अब अॉफिस इन प्राफिट में फंसे 21 विधायकों की सदस्यता रद होने की नौबत आ गई है। प्रशांत पटेल भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता भी हैं। इस पर केजरीवाल सरकार भले ही आरोप-प्रत्यारोप खड़ा करे मगर सच्चाई है कि खुलासे में बहुत दम रहा। जिससे राष्ट्रपति ने भी केजरीवाल की दलीलों को ठुकरा कर साफ कर दिया कि विधायक सचमुच में लाभ का पद लेकर बैठे हैं। 
प्रशांत पटेल की पृष्ठिभूमि
यूपी के फतेहपुर निवासी प्रशांत के पिता खेमराज उमराव शिक्षक होने के साथ गन्ना सोसाइटी के चेयरमैन भी रहे हैं। पांच जुलाई 1987 को पैदा हुए प्रशांत ने जहानाबाद के सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या मंदिर से हाईस्कूल-इंटर किया, फिर इलाहाबाद चले आए। यहां क्रिश्चियन कॉलेज से फिजिक्स एंड कंप्यूटर एप्लीकेशन में ग्रेजुएशन किया। एलएलबी की पढ़ाई भी की। नोएडा से फुटवियर  डिजाइनिंग में पीजी की डिग्री ली।
राजनीतिक करियर – प्रशांत का परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडा़ है। लिहाजा प्रशांत भी बचपन से आरएसएस की शाखाओं में जाते रहे। 2010 में प्रशांत भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े। फिर बीजेपी मीडिया सेल को अपनी सेवाएं देने लगे। 2014 के लोकसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए कैंपेनिंग की। प्रशांत राष्ट्रवादी व हिंदूवादी विचारधारा वाले कई संगठनों से जुड़े हैं। वे इस समय हिंदू लीगत सेल के सेक्रेटरी व हिंदू डिफेंस लीग के संस्थापक सदस्य हैं।

क्या है आप के 21 विधायकों के आफिस इन प्राफिट में फंसने का मामला
प्रशांत पटेल ही वह वकील रहे जिन्होंने केजरीवाल सरकार पर अपने 21 विधायकों को नियम विपरीत लाभ पहुंचाने के मकसद से संसदीय सचिव का पद देने का मामला उठाया। उन्होंने चुनाव आयोग के सामने याचिका दाखिल की। जिस पर आयोग ने 16 मार्च को केजरीवाल सरकार को नोटिस जारी कर 11 अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा। मगर विधायकों ने जवाब नहीं दिया। जिस पर दस मई तक फिर मौका मिला। सरकार ने आधा-अधूरा जवाब दिया, मगर आयोग संतुष्ट नहीं हुआ।
विधायकों के फंसने पर केजरीवाल ने पास कराया बिल, राष्ट्रपति ने बिल ठुकराया
दरअसल नियम के मुताबिक दिल्ली सरकार में सात मंत्री और एक संसदीय सचिव हो सकता है। मगर केजरीवाल सरकार ने विभागों की निगरानी के बहाने एक नहीं 21 संसदीय सचिव बना दिए। संसदीय सचिव लाभ का पद होता है। विधायक लाभ का पद नहीं ले सकते। अगर केजरीवाल को विभागों की निगरानी का काम सौंपना था तो विधायकों को विधानसभा समितियों का सदस्य या अध्यक्ष बना सकते थे। मगर उन्होंने विधायकों को मलाई खाने के लिए संसदीय सचिव पद बांट दिए। जब इसका खुलासा हुआ तो केजरीवाल ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को वैध कराने के लिए विधानसभा में बिल पास कराया। नियम विपरीत होने पर उप राज्यपाल  ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया। उधर जब बिल राष्ट्रपति के पास पहुंचा तो उन्होंने भी  नियम विपरीत पाकर खारिज कर दिया।
पीके फिल्म पर सबसे पहले दायर की थी रिट
जब आमिर खान की फिल्म पीके आई थी तो प्रशांत उमराव ही वह वकील थे, जिन्होंने फिल्म पर हिंदुओं की भावनाओं के साथ मजाक करने का आरोप लगाकर कोर्ट में रिट दाखिल की थी। इसी के साथ प्रशांत पहले से मीडिया के चर्चा में रहे। फिर जेएनयू मामले में भी उन्होंन दिल्ली हाईकोर्ट  में रिट दाखिल की थी।

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