
हम बात कर रहे हैं इंडस वॉटर ट्रीटी यानी सिंधु जल संधि की। दरअसल, इंटरनैशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन ऐंड डेवलपमेंट (अब विश्वबैंक) की मध्यस्थता में 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब ख़ान ने इंडस वॉटर ट्रीटी हस्ताक्षर किए।
सिंधु जल संधि के अनुसार भारत अपनी छह प्रमुख नदियों का लगभग अस्सी (80.52) फ़ीसदी से ज़्यादा यानी हर साल 167.2 अरब घन मीटर जल पाकिस्तान को देता है। तीन नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब तो पूरी की पूरी पाकिस्तान को भेंट कर दी गई हैं। यह संधि दुनिया की इकलौती संधि है, जिसके तहत नदी की ऊपरी धारा वाला देश निचली धारा वाले देश के लिए अपने हितों की अनदेखी करता है। ऐसी उदार मिसाल दुनिया की किसी संधि में नहीं मिलेगी।
अगर भारत ने इस संधि को तोड़ते हुए पाकिस्तान को पानी देना बंद कर दिया तो यक़ीनी तौर पर पानी बंद करने से पाकिस्तान की खेती पूरी तरह नष्ट हो जाएगी, क्योंकि पाकिस्तान की खेती बारिश पर कम, इन नदियों से निकलने वाली नहरों पर ज़्यादा निर्भर है। यह नुकसान सहन करना पाकिस्तान के बस में नहीं है। भारत से पर्याप्त पानी न मिलने से इस्लामाबाद की सारी अकड़ ख़त्म हो जाएगी और वह न तो आतंकवादियों का समर्थन करने की स्थिति में होगा और न ही कश्मीर में अलगाववादियों का।
भारत को अपने इस ब्रम्हास्त्र का इस्तेमाल करना चाहिए। पाकिस्तान के सामने पानी देने के लिए स्पष्ट रूप से दो शर्त रख देनी चाहिए।पहली शर्त की पाकिस्तान अपनी जमीन का भारत विरोधी जिहादियों द्वारा प्रयोग बंद करे और कश्मीर में आतकवाद फैलाना रोके और दूसरी शर्त ये की पाकिस्तान हाफिज़ सईद, ज़कीउररहमान लखवी , मौलाना अज़हर मसूद को भारत को सौंपे
अगर भारत ने पाकिस्तान के सामने ये शर्ते राखी तो यकीं मानिए पाकिस्तान की सारी अकड़ टूट जाना तय हैं..
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