
मौत के बाद सपने में आकर बतायी थी शव की लोकेशन
कैप्टन हरभजन सिंह ने वर्ष 1966 में 23वीं पंजाब बटालियन ज्वाइन की थी। 4 अक्टूबर 1968 में सिक्किम के टेकुला सरहद से घोड़े पर सवार होकर अपने मुख्यालय डेंगचुकला जा रहे थे तो वो तेज बहते हुए झरने में गिर गए थे। सेना ने उन्हें पांच दिन बाद लापता घोषित कर दिया गया था। उसी दिन रात में अपने साथी सैनिक प्रीतम सिंह को सपने में आकर अपने जीवित न रहने की जानकारी दी और बताया की उनका शव कहां पड़ा है। दूसरे दिन उसी स्थान पर सैनिकों ने उनका शव बरामद किया। दूसरे दिन राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसके बाद सैनिकों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिससे उनके प्रति आस्था बढ़ गई और उन्होंने उनके बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया।
आज भी करते हैं सरहद की रक्षा!
जब उनके चमत्कार बढ़ने लगे और लोगो में उनकी आस्था गहरी होने लगी तो उनके लिए एक नए मंदिर का निर्माण किया गया जो की 'बाबा हरभजन सिंह मंदिर' के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच, 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराना बंकर वाला मंदिर इससे 1000 फीट ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है।मंदिर के अंदर बाबा हरभजन सिंह की एक फोटो और उनका सामान रखा है। यही नहीं भारत और चीन के बीच होने वाली हर फ्लैग मीटिंग में हरभजन सिंह के नाम की एक खाली कुर्सी लगाईं जाती है ताकि वो मीटिंग अटैंड कर सके।
रोज लगते हैं बाबा के बिस्तर, सफाई के बाद भी जूतों में मिलता है कीचड़
लिहाज़ा सेना ने बाबा को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया। अब बाबा साल के बारह महीने ड्यूटी पर रहते है। मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है जिसमे प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाए जाते है। बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते है। कहते है की रोज़ पुनः सफाई करने पर उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटे पाई जाती है।
आस्था का केन्द्र है यह मन्दिर
बाबा हरभजन सिंह का मंदिर स्थानीय लोगों और सेना के जवानों की आस्था का केन्द्र है। इस इलाके में आने वाला प्रत्येक सैनिक बाबा का प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि अगर एक बोतल में पानी भरकर यहां रख दिया जाए तो इसमें औषधीय गुण आ जाते हैं।
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