
सोमनाथ का मंदिर अरब सागर के तट पर अवस्थित है. समुद्र की लहरे इस मंदिर को छू कर गुजरती थी. यहाँ स्थापित सोमनाथ की मूर्ति स्थापत्य कला की उत्कृष्ट मानी जाती रही है. यह मूर्ति मंदिर के मध्य बिना किसी सहारे के खड़ी थी. बिना आधार की इस मूर्ति को ऊपर से सहारा देने के लिये भी कुछ नहीं था.
1025 में गजनवी ने किया था मंदिर पर हमला.
सन 1025 के दिसम्बर के मध्य गज़नी का तुर्क सरदार महमूद यहाँ आया था. उसके लिये भी मूर्ति का बिना किसी सहारे के खड़े होना अचरज की बात थी. उसने अपने सेवकों से इसका कारण पूछा जिसका उसे तुरंत संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. यह मूर्ति किसी गुप्त वस्तु के सहारे खड़ी है ऐसा अधिकांश सेवकों का विश्वास था. यह जानकर उसने मूर्ति के चारों ओर भाला घुमाकर सेवकों से रहस्य का पता लगाने को कहा.
रहस्य जानने का प्रयास किया लेकिन नहीं जान पाया..
सभी सेवकों ने उसके आदेश का पालन किया. हालांकि, उन्हें ऐसी कोई वस्तु नहीं मिली जो भाले में अटके. महमूद मायूस हुआ.
फिर यूँ पता चला मंदिर का रहस्य..
फिर उसे किसी सेवक ने बताया कि मंदिर का मंडप चुम्बक जड़ित है जबकि मूर्ति लोहे की बनी है. उसने इसे किसी कुशल कारीगर की कारीगरी करार दी जिसने यह व्यवस्था की थी. चुम्बक इस तरह व्यवस्थित रखी गयी कि किसी ओर अधिक दबाव न पड़े.

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