
12 बोर की राइफल से दागी जाने वाली इस एक गोली में लगभग 600 लोहे के छर्रे भरे होते हैं और दागे जाने के बाद यह अपने सामने बड़े क्षेत्र में छर्रों की बौछार करती है. भारी भीड़ के सामने इस गोली की फायरिंग की चपेट में बड़ी संख्या में लोग आते हैं और ज्यादातर समय भीड़ में इसकी चपेट में आने से बचना लगभग नामुमकिन रहता है.
हालाँकि यह एक दर्दनाक एवं अमानवीय प्रक्रिया है लेकिन सेना के पास अब इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है .. कई दशकों से चला आ रहा ये संघर्ष कभी तो ख़त्म होगा.. कभी तो ऐसा दिन आये जब सेना के जवानों को पत्थर न खाने पड़े .. बस इसी आस में हर दिन जीते है सैनिक.. कश्मीर में आतंकवाद रोकने के लिए प्रयोग हो रहा ये तरीका कितना कारगर होगा ये तो वक़्त ही बताएगा
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